Wednesday 29 July 2015

खाना खाने के बाद पेट मे खाना पचेगा या खाना सड़ेगा

खाना खाने के बाद पेट मे खाना पचेगा या खाना सड़ेगा
Posted By Raj......
ये जानना बहुत जरुरी है ...
हमने रोटी खाई,हमने दाल खाई,हमने सब्जी खाई, हमने दही खाया
लस्सी पी ,
दूध,दही छाझ लस्सी फल आदि|,
ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया
ये सब कुछ हमको उर्जा देता है
और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है |
पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय"
उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"|
उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है
" epigastrium "|
ये एक थेली की तरह होता है
और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे
महत्वपूर्ण है
क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है।
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ये बहुत छोटा सा स्थान हैं
इसमें अधिक से अधिक 350GMS खाना आ सकता है |
हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है|
आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्न"।
|ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी |
यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|
ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है |
अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया|
और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है |
अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी|
आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|
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अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,
एक क्रिया है जिसको हम कहते हे "Digestion" और दूसरी है "fermentation"
फर्मेंटेशन का मतलब है सडना
और डायजेशन का मतलब हे पचना|
आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|
जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा|
ये तभी होगा जब खाना पचेगा|
यह सब हमें चाहिए|
ये तो हुई खाना पचने की बात
अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..? खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid )
|कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है,
मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है
तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ
यूरिक एसिड कम करो|
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---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- और एक दूसरा उदाहरण खाना
जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे
LDL (Low Density lipoprotive)
माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )|
जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP )
हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ?
तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |
आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?
तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |
इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष हे
वो है VLDL
(Very Low Density lipoprotive)|
ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।
अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides|
जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है |
तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये
विष हे और ऐसे विष 103 है |
ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |
मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है ,
कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है |
कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है |
क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता|
खाना पचने पर जो बनता है वो है मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र,अस्थि
और
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खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल
,LDL-VLDL|
और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !
पेट मे बनने वाला यही जहर जब
ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है
*जिसे आप heart attack कहते हैं !
तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है
की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए
और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है
* महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है |
आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे।
खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!
"भोजनान्ते विषं वारी"
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(मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर
है )
* इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पिये!*
अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???
तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !
अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??
बात ऐसी है !
जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं है !
पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट
का समय लगता है !
उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है !
(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत
धीमी हो जाती है )
पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की परिक्रिया शुरू होती है !
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तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं ।
तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये !!
जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खीचने वाले पत्थर तोड़ने वाले)
उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने
लगता है उनको घंटे बाद
पानी पीना चाहिए !
अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???
तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !
अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ????
बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं
तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !
और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है !
तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है !
तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये !
पानी ना पीये खाना खाने के बाद।
इसका जरूर पालण करे !
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Tuesday 28 July 2015

गठिया (Arthritis)

गठिया  (Arthritis)
Posted By Raj......
गठिया  का  अर्थ  संधियों  (जोड़ो )की  सूजन  एवं  दर्द  हे | यह  संधि  बड़ी  या  छोटी  भी  हो  सकती  हे |यह  बहुत   दुखदायक  रोग  हैजो  रोगी  को  अपने  दारुण  कस्ट  से  सताता  हे | उत्पत्ति  और  लच्छन अनुसार  इस  रोग  को  अस्थि  संधिशोथ  , अस्थिसन्धि   विकृति  , आमवात  , गठिया , गठिया  बाय , संधिवात , जोड़ो  का  प्रदाह , संधिवायु  ,अरबी  में  उलमुफलिश  कहते  हे |अंग्रेजी  में  osteo   athropathy  ,rheumatism , gout or joint pain कहते  हैं |
कारण   (etiology)
1 रक्त  में  यूरिक  एसिड  बहुत  अधिक  मात्रा  में  बढ़  जाना  इस  रोग  की  उत्पत्ति  का  एक  मुख्य कारन  हे |
2 यह  रोग  वंशानुगत  भी  पाया  जाता  हे |
3 गुप्त  संक्रामक  रोग  उपदंश (syphilis) और  फिरंग  के  संक्रमण  झेलने  के  बाद  भी  गठिया  रोग  हुए |
4 सर्दी  झेलने  और  भीगे  हुए  कपडे  पहन   कर    देर    तक   बैठने   पर  भी  यह  रोग  हो  जाता  हे |
5 अल्कोहल  के  अधिक  सेवन  से  भी  यह  रोग  उत्पन  हो   जाता  हे |
6 अनुचित  एवं  संयोग  विरुद्ध  आहार – विहार  लेने  से  भी  गठिया  हो  जाता  हे |
इस  रोग  के  और  भी  कारन  हो  सकते  हे |


गठिया  के  प्रकार  (type of joint pain)
1 नविन  (तीव्र ) गठिया  (acute joint pain)
1 पूय  युक्त   या  पुयजनक (supprative)
2 बिना  पूय  वाला  या  अपूयज  (non-supprative)
प्रमुख  लक्सण  –रोगी  व्याकुलता  अनुभव  करता  है | मानशिक  तनाव  और  चिंता  सताती  हे | नींद  नहीं  आती  | बड़ी  या  छोटी  संधियों  मैं  पीड़ा  होती  है  | गठिया  रोग  मैं  रोगी  पहले  पैर  के  अंगूठे  की  जड़   मैं  दर्द  होने  की  बात  कहता  हैं | जोड़  सूजने  लगते  हैं |रोगी  को  सोकर  उठने  पर  जोड़ो  में  अकड़न  जकड़न  लगती  है  |

2 जीर्ण (पुराना )गठिया   (chronice joint pain)
1 तंत्रिका  सम्बन्धी  जीर्ण  गठिया
2 ह्रदय  सम्बन्धी  जीर्ण  गठिया
ह्रदय  सम्बन्धी  मई  ह्रदय  धड़कना  तथा   हृदयशूल  होती  हे  | तंत्रिका  सम्बन्धी  में  तंत्रिका  ( narves) की  गड़बड़ी  अधिक  होकर  तीव्र  दर्द  झनझनाहट  तंत्रिका  शूल  आदि  होती  है  | जरा  सी  ठोकर  से  झनझनाहट  बढ़  जाती  हे |जोड़  टेढ़े  मेढ़े  हो  जाते  है  |



यहाँ  आपको  कुछ  आयुर्वेद  पर  आधारित  ओषधि  बताई  जा  रही  हे  जोकि  किसी  आचे  वैध   द्वारा  ली  जा  सकती  हे |
तथा  सभी  आयुर्वेद  केन्द्रो  पर  भी  उपलब्ध  होती  हे  |
1 योगराज  गुग्गुलु
2 वृहत  योगराज  गुग्गुलु
3 सिँहनाद  गुग्गुलु
 4 सप्तविंशतिको  गुग्गुलु
5 त्रिफला  चूर्ण
6 पंचसम  चूर्ण
7 पंचसकार  चूर्ण
8 निर्वेदं  चूर्ण
9 सर्पगंधा  चूर्ण
10 चित्रकादि  वटी
11 विषतिन्दूकड़ी  चूर्ण
12 अश्व्गंधड़ी  चूर्ण
13 रशनदी  चूर्ण
14 शिवा  गुग्गुलु
15 अम्र्ताघ    चूर्ण
16 अजमोदादि  चूर्ण
17 वर्ध्दंड  चूर्ण
18 त्र्युदसद्घ   गुग्गुलु
19 पंचामृत  लोह  गुग्गुलु
20 नारायण  चूर्ण
21 चंद्रप्रभा  वटी
22 महासुदर्शन  चूर्ण
23 किशोर  गुग्गुलु
24 कांचनार  गुग्गुलु
25 धात्री  भल्लातक  वटी
26 विरेचन  चूर्ण
27 वीर्य  सोधन  चूर्ण
28 नरसिंह  चूर्ण
29 महारास्नादि  क्वाथ
30 अर्जुनारिष्ट
31 अश्वगंधारिष्ट


कुछ   ब्रह्य  पयोग  के  लिए  तेल
1 बला  तेल
2 महाविषगर्भ  तेल
3 महानारायण  तेल
4 निर्गुण्डी  तेल
5 धतूरे  का  तेल


कुछ  आयुर्वेद  के  महापुरष  वैद्यो  के  सफल  अनुभूत  योग
 आचार्य  चरक  का  योग
मुस्तैदी  उपनाह  – मोठा  , सूरा  कित्त  (मध  का  तेल ), कला  तिल , कूठ , देवदारु , सैंधा  नमक , तगर  संभाग  कूटकर  चूर्ण  बना  ले  | अब  इस  चूर्ण  में  दही ,  दूध , घृत  (घी ) तेल  , वश  और  मज्जा  मिला  कर  आग   पर  पकाये  | जब  गाढ़ा   हो  जाये  तो  संधि  सोंठ  , घुटनो   के  सोथ  और  दर्द  पर  गर्म  – गर्म  लेप  करे  उसपर  कम्बल  की  पट्टी  लप्पेट  दे  | यहन  क्रिया  बार -बार  करने  से  आराम  मिलेगा |

 आचार्य  भाव  मिश्र  के  योग
 1 संधिशोथ  पीड़ाहर  योग - इन्द्रायण   की  जड़  की  छल  और  पिप्पली  को  संभाग  गुड  मिलकर  कुल  12  ग्राम  की  मात्र  में  खाने  से  संधिशोथ  , संधिशूल  और  आमवात  के  सोथ  और  दर्द  में  दिन  में  1-2 बार  लेने  से  लाभ  होता  हे |
2 छिले  होए  लह्शुन  को  पिश  कर  उसका  कलक  बनाकर  काले  तिल  के   तेल  और  सैंधा  नमक  के  साथ  प्रातः  साय  खाने  से  आमवात , गठिया  और  अस्थिसन्धि   सोथ  तथा  पीड़ा  मैं  लाभ  होता  है |

आचार्य  संघ्धर  के  योग
1 वातरक्ते   अमृतादि  क्वाथ - गुडुची, अरण्ड  की  जड़  की  छाल  और  बांस  के  पत्ते  संभाग  के  क्वाथ  मैं  विसुध  अरण्ड  का  तेल  मिला  कर  पिने  से  समस्त  शर्रीर  में  प्रसार  पाया  हुआ  वातरक्त  , गठिया  ठीक  हो  जाता  हे |

आयुर्वेद  मार्तण्ड  आचर्य  श्री  प  . यादवजी  विक्रम  जी  के  योग
आवला , बिरोजा  सत्व , शोरा किमी , गोखरू , स्वर्ण  गेरू , फिटकरी  का  फूला , शीतल  चीनी , रीठे  की  मींगी , चोबचीनी , हल्दी , राल , कतीरा , शिलाजीत , सफेद  चन्दन  का  चूर्ण  , कत्था , माजूफल , छोटी  इलायची  के  काले बीज , pashan  भेद , सब  संभाग  ले  | शिलाजीत  को  छोड़   कर  समस्त  ओषधि  द्रव्यों  को  कूटकर  कपड़छान  करके  शिलाजीत  को  मिला  ले  | बलवाल  अनुशार  2-3 ग्राम  चूर्ण  दिन  मैं  2- 3 बार  प्रतिदिन  ताजे  जल  या  दूध  की  लस्सी  के  साथ  ले  | यह  सुजाक  , मूत्रकृछ  तथा  पूयमेह  के  संक्रमण  से  उत्त्पन  संधि  सोथ  , गठिया  , जोड़ो  के  दर्द  और  आमवात  सोथ  तथा  उनके  कस्ट  मैं  लाभप्रद  हे |


निशेध  आहार -
आचार , खट्टे  पदार्थ , कब्ज  करने  वाले  तथा  वात  को  बढ़ाने  वाले  भोजन   और  पेय  न  ले  | दही  , बड़हल , कटहल , बसी  भोजन  , शीतल  पेय  और  आहार  , मट्ठा , नया  चावल  , मिठाई  , कहते  , लाल  मिर्च , तेल  की  तली  चीजे , वनस्पति  घी , मैदा  से  बने  पदार्थ  ,आदि  सख्त  परहेज  चाहिए |
निषेध  विहार - अधिक  चलना , सीधी  चढ़ना ,कामवासनातमक  विचार  रखना , या  किर्या  करना  , अधिक  शारीरिक  या  मानशिक  श्रम  करना  , दिन  में  सोना  और  रात  में   जागना , मल - मूत्र  को  रोकना ,  गुस्सा  आदि  करना  निषेध  हे |